शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

अर्निंग, लर्निंग डबिंग और डवलपिंग मुख्यमंत्री

अर्निंग, लर्निंग डबिंग और डवलपिंग मुख्यमंत्री
भारत भूषण अरोरा
उततर प्रदेश के मिशन 2017 की राजनीतिक शतरंज में धीरे धीरे मोहरे बिछनी शुरू हो चुकी हैं। सपा,बसपा के राजा और वजीर तो पहले से ही तय थे। भाजपा और कांग्रेस के मोहरों की इंतजार बेसब्री से इंतजार थी। कंाग्रेस ने शीला दीक्षित को यूपी की कमान देकर भाजपा को राजनीतिक चुनौेती तो दे ही दी है। कांग्रेस की तरफ से शीला दीक्षित का नाम घोषित होेते ही यह साफ हो गया है कि प्रदेश में चुनाव अब अर्निंग लर्निंग,डबिंग और डवलपिंग छवि वाले सी एम के नेतृत्व में ही लडा जाएगा।
प्रदेश के मिशन 2017 के लिए भाजपा को छोडकर सभी मुख्य पार्टियों के शतरंजी मोहरे मैदान में उतर चुके हैं इन्ही के बीच चुनावी शह और मात का खेल खेला जाएगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने को         लर्निंग मुख्यमंत्री कह कर खुद ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके शासन में अगर कोई कसर रह गई हो तो वे उन्हे लर्निंग मुख्यमंत्री समझकर माफ कर दें। हालांकि उन्होने यह बात इस संदर्भ में कही थी कि जब वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो उन्हे लर्निंग मुख्यमंत्री बताया गया था लेकिन है वे परिपक्व मुख्यमंत्री। लेकिन उनके मूंह से निकली यह बात अगर मुजफफरनगर दंगों के साथ जोडकर देखी जाए तो वास्तव में वे लर्निंग मुख्यमंत्री ही कहलाने के हकदार है।
बसपा सुप्रीमों मायवती के मुख्यमंत्रीत्व के कार्यकाल को देखा जाए तो वे ला एंड आर्डर के मामले में आज भी याद की जाती हैं। उनका नाम लेते ही प्रशासनिक अधिकारियों को पसीने आने लगते थे और  गंुडो को तो उन्होने औकात में ला ही दिया था। लेकिन हर तरफ पैसे का बोलबाला ऐसा हुआ कि हर सरकारी काम के दाम तय हो गये थे जो पहले कभी इतने खुलेपन से शायद ही हुए हों पोंटी चडढा के ठेकेां पर जब तय  दाम से दस और बीस रूप्ये ज्यादा लिए जाते थे तो सेल्समेन यह कहता था कि ये मायावती टैक्स है ये तो देना ही होगा। यानि कमाने और कमवाने में वे अपने आप में पहली मुख्यमंत्री ही कही जाएंगी। इसलिए उन्हे अगर अर्निंग छवि वाली मुख्यमंत्री कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कांग्रेस की तरफ से यूपी के मुख्यमंत्री पद की घोषित उम्मीदवार शीला दीक्षित दिल्ली की  लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं  उनकी कार्यशैली की तो आलोचना हो सकती है लेकिन इस दौरान उन्होने विकास की इतने काम कराए कि उन्होने डवलपिंग मुख्यमंत्री का तमगा तो हासिल कर ही लिया था।
रहा सवाल भाजपा का तो उसके पास मिशन 2017 के लिए चाहे जितने कददावर नेता हों जो मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित हो सकते हैं वे कहलाएंगे प्रधानमंत्री मोदी के डबिंग ही। इसकी वजह यही है कि मुख्यमंत्री के नये उम्मीदवार की बात ही छोडिये पुराने मुख्यमंत्री राजनाथ, कल्याण सिंह या उमा भारती हों उनका कद भाजपा ने कांट छांट कर इतना छोटा कर दिया है वे भी मोदी के डबिंग ही नजर आने लगे है। स्मृति ईरानी के भी पर इस कदर कतर दिये है कि वे उडने लायक ही नहीं रहीं। इनके अलावा भाजपा जिसको भी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करेगी वह मोदी का डुप्लीेकेट ही लगेगा।
शीला दीक्षित का नाम यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में घोषित कर कांग्रेस ने भाजपा को तो फिलहाल चुनौती दे ही दी है सपा और बसपा को भी संदेश दे दिया है कि कंाग्रेस अभी चुकी नहीं है। वहीं प्रदेश की जनता को भी संदेश दे दिया है प्रधानमंत्री देश के अकेले विकास पुरूष नहीं है। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनते ही लगता है प्रदेश को चुनाव अब चौकोना होने जा रहा है। और लर्निंग, अर्निंग, डबिंग और डवलपिंग जैसे शब्द इस चुनाव में छा जाएंगे।

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