शनिवार, 25 जून 2016

घर का दूर पडौसी नेडे

घर का दूर पडौसी नेडे
सैकडों साल पुरानी इस मिसाल को बनने में सैकडों साल का ही अनुभव लगा होगा तभी तो यह जनश्रुति बनी। यह मिसाल कम नसीहत ज्यादा है जो परिवार में अक्सर उन बच्चों को दी जाती है जो किशोर अवस्था को पार कर अपना जीवन बनाने में लगे होते हैं। इस मिसाल से यह नसीहत मिलती है कि जब आदमी पर संकट आता है तो घर के लोगों या रिश्तेदारों को एक बार को पहुंचने में देर लग सकती है लेकिन पडौसी सबसे पहले आपकी मदद को आ सकता है इसलिये बच्चों को यह मिसाल सुनाकर यह समझाया जाता है कि पडौसी से कभी मत बिगाडो तथा उसकी हर मदद को हमेशा तैयार रहो।
 यह मिसाल हर तरह के पडौसियों पर लागू की जा सकती है चाहे वे घर के पडौसी हों या गांव के और चाहे वे हमारे देश के पडौसी ही क्यों न हों । भारत के अगर अपने पडौसियों से संबध अच्छे हों तो देश के विकास की रफतार दोगुनी हो सकती है। हमेें इस मिसाल को अपनी विदेश नीति की धुरी बना लेना चाहिए। आज के हालात में भारत के अपने पडौसियों चीन, पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश, हो या बर्मा से पडौसी वाले रिश्ते नहीं है। हम ठीक इसके विपरीत चल रहे हैं और अमेरिका की गोद में बैठ चुके है। अमेरिका का इतिहास है कि उसने हमेशा अपने हितों के लिए तथा अपने हथियारों की बिक्री के लिए हर तरह के आतंकवाद को संरक्षण दिया है।
आप अपने इर्दगिर्द झांककर देखिये जिस पडौसी के अपने पडौस से संबध अच्छे नहीं है उसका जीवन दुखी ही नजर आएगा और जिसके पडौसी से संबध मित्रवत है उसक जीवन खुशहाल दिखाई देगा। अनुभव कहता है कि आधे से ज्यादा पलायन  पडौसियों से संबध खराब होने के चलते होता है। हमें अपनी विदेशनीति को भी इसी हिसाब से बनाना चाहिए अपने पडौसियों से हर हाल में संबध मित्रवत रखने चाहिए चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पडे। उग्र राष्टृवाद हो या उग्र परिवारचाद अपने पडौसियों से संबधों को दुश्मनी में बदल डालता है।

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