रविवार, 19 जून 2016

मंदिर ढाह दे, मस्जिद ढाह दे

मंदिर ढाह दे, मस्जिद ढाह दे ¬
 कैराना बोले तो,,,,,, बुल्ले शाह
गूगल सर्च कर ही रहा था तो अचानक पाकिस्तान के कोक स्टूडियो में बुल्ले शाह के गीत कानों में पड गये इसे सुनने के बाद लगा कि बुल्ले शाह को कैराना ही नहीं पूरे देश को सुनने की जरूरत है। बुल्ले शाह ने दोनों तरफ के कटटर पंथियों को अपनी वाणी से जो जवाब दिया है आदमी को जाति धर्म की सोच से उपर उठाकर आदमीयत की सोच से बांधता जो आदमी को आदमी बनाती है हिन्दू मुस्लिम नहीं। बुल्ले शाह को कोक स्टूडियों में हंसराज हंस, आबिदा परवीन, हदीका कियानी, आरिफ लौहार, जगजीत सिंह जैसे नामी कलाकारों ने गाया है आप भी सुनियें और जितना शेयर कर सके करिये ताकि पूरा देश सुन सके बुल्ले शाह की कहन्दा हैं।
मंदिर ढाह दे, मस्जिद ढाह दे । ढाह दे जो भी तेथू ढहंदा। पर कभी किसी दा दिल ना ढावीं। हर दिल विच रब बसता।
जा जा वडदा ऐं मंदर मसीते । कभी शख्स अपने अंदर वडिया नहीं। पढ पढ हजार किताबां कभी अपने अंदर पढया नहीं।
ऐवें लडता है शैतान दे नाल बंदया, कभी अपने से लडया नहीं। ऐवें फडदा है आसमानी कभी उसको पकडा जो दिल विच बसता।
जे रब मिलता नहाने धोने से तो मिलता मेंढकेा मछलियों को। जे रब मिलता जंगल फिरने से तो मिलता गाय भैंसो को।
जे रब मिलता मंदिर मसीते तो मिलदा चमगादडों छिपकलियों को। भर्इ्र रब तो उसी को मिलता जिसकी नियत सच्चियां।
         भारत भूषण अरोरा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें