बुधवार, 25 नवंबर 2015

मेरे उल्लू की शादी!

मेरे उल्लू की शादी!
1925 में दशहरे वाले दिन जब मेरा जन्म हुआ था। उस वक्त भगत सिंह अंग्रेजों को भगाने के लिए खेतों में बन्दूकें बोने में लगा था। इधर गांधी नाम का एक शख्स भूखे पेट रहकर आजादी लेने की बात पर अडा था। मैने सोचा भगत सिंह बन्दूके तो बो रहा है पर कारतूस बोने की उसके पास कोई योजना ही नहीं है खाली बन्दूकों से तो अंग्रेजों को नही भगाया जा सकता था। रही बात गंाधी की तो जब भूखे पेट भगवान का भजन नहीं हो सकता तो अंग्रेजों को कैसे हिन्दुस्तान से बाहर निकाला जा सकता है। इसलिए मैने सोचा भगत सिंह तो शेखचिल्ली वाली प्लान पर लगा है और गांधी दिन में सपने दिखा रहा है। मेरी सोच थी कि अगर इन दोनांें के प्रयास से अंग्रेज चले भी गये तो देश को बांट कर जाऐंगे। मेरी यह भी सोच थी कि अगर मै इन दोनों में से किसी के साथ भी लडा तो देश के बंटवारे की तोहमत इनके साथ मेरे सिर भी लगेगी। इसलिए मैने दोनों की बात पर यकीन नहीं किया सो बचपन और जवानी का मजा लेने के लिए मैं 1947 तक गुल्ली डंडा खेलता रहा और शादी न करने का कठोर निर्णय भी ले लिया। खैर 15 अगस्त 1947 को अंग्रेज चले तो गए लेकिन देश को तो बांट ही गये।
मेरा शक सही साबित हुआ शुक्र है उपर वाले का देश के बंटवारे की तोहमत से मैं बच गया था। मेरे जैसे महान देशभक्त के लिए देश का बंटवार एक गहरा सदमा था। एक सिरफिरे को तो अंग्रेज ही निपटा गये थे। दूसरे सिरफिरे को निपटाना देशहित में जरूरी था सो मैने उसे दुर्वासा ़िऋषी की तरह भस्म होने का श्राप दे दिया। एक कुंवारे का गांधी को श्राप देना देश के लोगों को पसंद नहीं आया। मान्यता है कि कुंवारे या कुंवारी का श्राप मूर्त हो जाता है
 सो सयाने लोगों ने पंचायत करके मेरी शादी का निर्णय ले लिया ताकि फिर किसी को कुंवारे का श्राप न लगे। स्वयंवर प्रथा के तहत अपने लिए कन्या का चयन का भार भी मेरे उपर ही था। नफरती देवी नाम की एक सुन्दर कन्या ढंूढ कर मैने शादी कर ही डाली। शादी के पचास साल तक भी मेरे घर औलाद के नाम पर एक चुहिया का बच्चा भी पैदा नहीं हुआ। औलाद के लिये मैने कमंडल उठा कर सोमनाथ से कन्याकुमारी तक रथयात्रा भी कर डाली। थक हार कर अयोध्या में हम दोनों पति पत्नि ने कुल्हाडी और फावडे चलाए तब कहीं जाकर मेरी पत्नि गर्भवती हुई। इतनी मेहनत के बाद 1996 में जो औलाद हुई वो भी तेरह दिन बाद ही चल बसी। दूसरी बार हजारों भंडारे व लंगर करने के बाद जोड तोड व जुगाड का सहारा लेकर टैस्ट टयूब तकनीक का सहारा लेकर एक विकलांग संतान 1998 में पैदा तो कर ली लेकिन वह भी पांच साल जिंदा रहने के बाद आखिरकार 2004 में चल बसी। मुझे पता था कि विकलांग औलाद का मरना तय है। इसलिये 2002 में गुजरात का बीज मंगाकर मैने पहले से ही एक मर्द औलाद की नींव रख दी थी। बारह साल के गर्भधारण के बाद भारी प्रसवपीडा के बाद 2014 में मेरी मुराद पूरी हुई। इस संतान का नाम हमने उल्लू रखा क्योंकि 12 साल तक इसने हम पतिपत्नि को उल्लू बनाए रखा और पेट से बाहर आने का नाम ही नहीं लिया था और जब बाहर आई तो दाई को उल्लू बनाकर ही बाहर आई। अब यह औलाद लगभग दो बरस की होने को है और अपनी बाल शरारतों से उल्लू बनाने की कला में प्रवीणता हासिल कर रही है। मेरा यह उल्लू ही मुझे कंधा देकर भवसागर से पार उतारेगा। ऐसी मेरी आशा है।
  बिहारी दुल्हन पसंद कर अब हमने इसकी शादी की तारीख पक्की कर दी है। इसकी शादी का निमंत्रण आपको भी भेजा जा रहा है। कृपया आप वर वधु को अपना आर्शीवाद देने जरूर आईयेगा ताकि मेरा वंश चलता रहे और आप भी उल्लू की बाल लीलाओं लाभन्वित हो सकें
चिरंजीवी उल्लू संग दीर्घायु बिहारन।
 दिनांकः 26 मई 2019।
 स्थानः राजघाट नई दिल्ली।
 सहभोजः रात्रि बारह बजे।
 व्यजंनः गउमाता के विशेष दूध में अरहर की दाल का हलवा,बिना प्याज व टमाटर का गुजराती मुर्गा,                               गंगाजल व असहिष्णु मंत्रोचार से उपचारित केंचुआ मैगी का विशेष प्रबन्ध।
विशेषः लोकतंत्र की महान भेड बकरियां परिणय सूत्र में बंध रहे वर वधु के स्वागत में अपना लोकनृत्य प्रस्तुत कर आपका मन मोह लेंगी। नरमुंडों की गुजराती वरमाला पहनाकर वरवधु का परिणय बंधन होगा। रोजा तथा उपवास रखकर आने वाले मेहमानों को 15 लाख के कालेधन की विशेष भेंट का खास इंतजाम किया गया है।
मेरे उल्लू की छादी में जलूल जलूल आना।
                 पलकें बंद किये आपके स्वागत को आतुर
                         आदमखोरः  राजा समापन सिंह
सौजन्यः बक्कड की बक बक से  भारत भूषण

रविवार, 22 नवंबर 2015

ये जो मीडिया हैा


मीडिया प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक दोनों को ही बिहार विधान सभा चुनाव में साख का घाटा उठाना पडा है। मीडिया सब पर चर्चा कर रहा है लेेकिन अपने बारे में चर्चा नहीं कर रहा है। टीवी पर लाइव चर्चाओं का स्तर ,मेहमानों का कद तथा एंकर का ज्ञान व पक्षपात देखकर श्रोताओं को मितली आने लगती थी। बडी ही होषियारी के साथ  विकास को मोदी व जाति को लालू के साथ चस्पा कर  दिया गया था । गांव गांव घूम कर गरीबी व पिछडेपन के दृष्य दिखाए जाने लगे पिछले दस के विकास को ढंककर  जंगलराज के दर्षन कराए गए । बिहार का वोटर समझ   गया था इसलिये वोटर ने जाति का नाम ही नहीं लिया हर किसी ने विकास का नाम पर  वोट देने की बात कही । जैसे ही वोटर विकास के नाम पर वोट देने की बात कहता तो माईक लिए संवाददाता उछल पडता कि देखो देखो सब तरफ विकास के नाम पर वोट पड रहा है यानि कि मोदी के नाम पर वोट पड रहा है। क्योेंकि विकास के एजेंडे  को तो मोदी के साथ चस्पा कर दिया गया था और जाति को लालू के साथ । इसी के साथ लगा कि तमाम सर्वे दफतर में ही बैठकर  पूरे कर लिये गये हों तभी तो सारे सर्वे धरे के धरे रह गए । पिंट मीडिया ने थोडा बहुत संयम बरता यही वजह थी कि कांटे की टक्कर के लेख छप सके।
आज मैने लोगो से मीडिया की भूमिका को लेकर लगभग सौ लोगो से बिहार चुनाव में मीडिया की भूमिका को लेकर सवाल पूछे तो सबका कहना था कि मीडिया जल्द से जल्द निश्पक्षता का लबादा उतार दे तो अच्छा वरना लोग उस पर यकीन करना छोड देंगे । मीडिया को केवल सूचना का माध्यम मान कर पाठक व श्रोेता उससे प्रभावित नहीं होगा यानि जनमत निर्माण की क्षमता  मीडिया खो देगा। जनता के मूड की परख व जनमत निर्माण ही मीडिया की ताकत है और यही उसकी  प्राणवायु भी है यही छिन जाएगी तो क्या होगा? यह भी मांग उठी कि मीडिया अपनी राजनीतिक प्रतिबद्वता जाहिर व प्रकाषित कर काम करे तो यह देष के हित में भी होगा और खुद मीडिया के भी  क्योंकि ऐसी मीडिया पर पक्षपात का आरोप तो नही होगा । वैसे भी आज पाठक यह जान चुका है  कि  पूरा मीडिया कारपोरेट के कब्जे में है जो अपने हितो के अनुकूल मीडिया कर्मियों से काम कराते है। दक्षिण भारत में राजनीति से प्रतिबद्व मीडिया है जिस पर लोग यकीन भी करते  है। लोग उनकी बात सुनते है मन अपना बनाते है। मौजूदा हालात में राजनीतिक रूप से प्रतिबद्व मीडिया की जरूरत महसूस की जाने लगी है।
 पहले नेषनल हैराल्ड व जनयुग ऐसे ही अखबार थे लेकिन उनकी संख्या सीमित होने व अतिवाद के कारण अविष्सनीय होते गये। आज हालात फिर उसी ओर जाने को मजबूर कर रहे है। लेकिन उनका हश्र हैराल्ड व जनयुग जैसा नहीं होगा क्योंकि अब तादाद ज्यादा होगी ।

     भारत भूशणं

पाला तो तय करना ही पडेगाा


 पूरा देष दो पालों में बंटता हुआ दिखाई दे रहा है। लेखकों,वैज्ञानिकों,इतिहासकारों,षिक्षकों,व पत्रकारों से लेकर आम आदमी तक सब के सब मोदी विरोधी और मोदी समर्थक खेमें में बंट चुके है । ऐसा सोचना आज अतिष्योक्ति भले ही लगती है लेकिन कल  यह बात खरी उतर सकती है ।
अनुपम खेर ने  सडक पर उतरकर जिस तरह की खेमेबंदी कर पदक लौटाने वालों को गरियाते हुए मोदी विरोधी करार देने और तमाम टीवी चैनलों पर चलने वाली बहसें और उनके एंकर व मालिकों की राजनीतिक संबद्वता से यह बात आसानी से समझी जा सकती है । मोदी की चुप्पी और हमलावर भाशण भी इसी ओर इषारा कर रहे है। मानो वे खुद चाहते है कि पूरा देष उनके समर्थक और विरोध में बंट जाए । यहां तक की खुद भाजपा को भी इन्ही दो पालों में बांट चुके है ।
 जिस दिन  मा ेदी सरकार ने  षपथ ग्रहण की थी उसी दिन मैने अपने एक लेख में कहा था कि आजादी के बाद देष में पहली बार कोई वैचारिक स रकार का गठन हो रहा है  और मोदी उसका जबरन  नेतृत्व कर रहे है इसलिए भाजपा एक दिन पृश्ठभूमि में चली जाएगी । मोदी की सरकार की एकबारगी अनदेखी की जा सकती है परन्तु मोदी की अनदेखी उसके विरोधी भी नहीं कर पाएंगे । कांग्रेस मध्यमार्गी विचार धारा की पार्टी कहलाना पसंद करती थी क्योंकि वह अपने साथ सभी धाराओं को ल ेकर चलने का दावा करती थी । उसकी विदेषनीति भी गुटनिरपेक्षता वाली ही रही इसलिए वह कभी षाहबानों पर  मुसलमानों के सामने घुटने टेकती है तो कभी हिन्दुवादी पार्टियों की बात मानकर बाबरी मस्जिद का ताला ख्ुालवाती है।  जबकि मध्यममार्ग कोई मार्ग नही होता सडक के बीचोंबीच आप गाडी नहीं चला सकते आपको दाएं या बाएं ही चलना पडेगा । केन्द्र में अगर वैचारिक पार्टी की सरकार है तो वैचारिक विपक्ष ही उसका मुकाबला कर पाएगा । अवैचारिक लोगों के बस की  बात नहीं  िक वे  मोदी का मुकाबला कर लें ।
बुद्विजीवी स्तर पर मोदी समर्थक और विरोध की पालेबंदी धरातल पर नजर आने लगी है लेकिन आम जनता के स्तर पर अभी यह प्रक्रिया में हैं । मोदी समर्थक नहीं चाहते कि आम जनता के स्तर भी दो पाले अभी जल्दी से बन जाएं  इसलिए विवादित मामलों पर चुप्पी साधे रहते है और बाकी मामलों पर बोलने में पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखते । जिस दिन आम जनता के स्तर पर मोदी समर्थन या विरोधी की पालेबंदी रफतार पकड लेगी उसी दिन आम जनता भी वैचारिक रहनुमा की तलाष कर लेगी जो मोदी को आर्थिक नीतियों पर बहस करने के लिए मजबूर कर देगा । आज एक बात और बडी मजबूती के साथ कह देना चाहता हूं कि  रिटेल में सौ प्रतिषत एफ डी आई की अनुमति ही देष की आम जनता को मोदी के समर्थक और विरोधी में बांट देगाी । सबको अपना पाला तय करना ही पडेगा ।

     भारत भूशण

दसमुहां रावण


दसमुहां  आर एस एस
आर एस एस को रावण की तरह दषाषन  यूं ह ी नहीं कहा जाता इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं  जो इस बात की चुगली करते है कि आर एस एस के वाकये ही दस मूंह है लेकिन ये  दस मूंह एक साथ नही ं बोलते बल्कि एक बार व एक समय में एक ही बोलता है। बाकी नो चुप रहते हैेै।
एक मूंह से कही गई बात समाज या कानून को हजम हो गई तो बाकी के नो मूंह उसका समर्थन करने लगते हैं। यदि उल्टी पड जाए तो बाकी के नो मूंह उसे  दुर्भाग्यपूर्ण कहकर टालने व अपने दसवें मूंह को बचाने की षर्मनाक कोषिष करते है। आर एस एस  अपने आप को कटटर राश्टृभक्त साबित करने के लिए अपने कार्यक्रमों में षहीदे आजम भगतसिंह की फोटो अवष्य लगाता है लेकिन उनके विचारों से उसे कोई मतलब नहीं है। न ह ीवह  अपने कार्यकर्ताओं से इस बात की अपील करता  िक वे भगत सिंह के विचारों पर अमल करें। भगतसिंह के बाकी विचारों की तो बात ही छोडिये उनकी इस छोटी सी बात पर भी अमल करने पर जोर नहीं दिया जाता कि समाज के संचालकों की कथनी और करनी में बाल भर भी अंतर नहीं होना चाहिए। जबकि यह विचार खाली भगतसिंह का नहीं बल्कि सनातन है। भगतसिंह ने असेम्बली में बम फेंकने के बाद बहादुरी के साथ अदालत में भी कहा था कि ह।ं हमने ही बहरे अंग्रेजों को सुनाने लिए विस्फोट किया है।
 हिन्द ुमहासभा ने जिस हौंसले और उत्साह के साथ गोडसे का बलिदान दिवस मनाया है वह काबिले गौर है। महासभा के इस कृत्य की कांग्रेस तथा वामपंथी दलों के साथ साथ सभी राजनीतिक पाट्रियों  ने निंदा करते हुए कानूनी  कारवाई की मांग भी की है। आर एस एस ने भी महात्मा गांधी के इस हत्यारे को महिमा मंडित किये जाने की आलोचना तो की है लेकिन हिन्द ुमहासभा पर कारवाई की मांग नहीं की है।
यही एक कारण है जो षक जाहिर करता है कि आर एस एस भी दाएं बाएं से चाहता है गोडसे को महिमामंडित  किया जाता रहे और उसकी तोहमत आर एस एस पर भी न लगे ।खुद गोडसे ने जब गांधी को मारा था तो आर एस एस ने उसे अपना कार्यकर्ता ही मानने से इंकार कर  दिया था।
 इससे पहले दादरी की घटना हो या भाजपा के कुछ नेताओं के जहरबुझे बयान हों दुर्भाग्यपूर्ण कह कर टाल दिया जाता है। यहां पर निंदा या आलोचना नहीं की जाती बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण षब्द का इस्तेमाल बडी चालाकी के साथ किया जाता है  ताकि जनभावना या कानून का तथाकथित सम्मान भी बना रहे और आर एस एस की विचारधारा के अनुकूल माहौल का निर्माण भी अनवरत चलता रहे। इससे पहले बाबरी  मस्जिद के गिराए जाने की घटना के समय भी उसे गिराने का श्रेय जनसभाओं में तो बडी बहादुरी के स ाथ लिया जाता रहा है लेकिन अदालत में ये बहादुर आज तक मानने को तैयार नहीं कि  बाबरी मस्जिद हमने ही गिराई थी। इन तथाकथित हिन्दु क्रांतिकारियों  से इतनी तो उम्मीद की ही जाती है कि वे अदालत में बहादुरी के साथ कहते कि  हां जनाब बाबरी मस्जिद हमने ही गिराई। बाबरी षब्द कहने से अगर दम घुट रहा था तो कम से कम अदालत में यही कह दें कि मी लोर्ड ढांचा हमने ही गिराया है। कलबुर्गी, व कामरेड पनसारे आादि के हत्यारे क्या भगतसिंह की तरह हिम्मत के साथ कह सकते है। कि इनकी हत्या हमने ही की है या उनकी सनातन संस्था कुछ बोल सकती है । आर एस एस सांप्रदाायिक माहौल को कभी मंद नहीं पडने दे सकती भले उसे सौ मूंह और लगाने पडें।
आर एस एस इस देष पर इतनी मेहरबानी कर दे कि वो अपने कार्यक्रमों से भगतसिंह की तस्वीर हटा ले या फिर भगतसिंह की तरह बहादुरी से सच को जनता व अदालतों में कहना सीख ले । याद हिन्दुस्तान पर वही राज करेगा जिस नेता और उसकी पार्टी में कथनी करनी का अंतर नहीं होगा। वरना जनता  प्रयोग करती रहे

                                 भारत भूशण

बहुमत माने सौ में इक्‍यावन

बहुमत माने ए सौ में इक्यावन
बहुमत माने, सौ में इक्यावन
देष में आज असहिश्णुता, सांप्रदाायिकता व जातिवाद का जो माहैल चल रहा है उसके कुछ हद तक हमारी चुनाव प्रणाली भी जिम्मेदार है । वही किसी भी  पार्टी को तीस पैतीस प्रतिषत मत लेकर सत्ता के षीर्श पर बैठा देती है। जबकि षेश साठ से पैसठ प्रतिषत बहुमत एक साइड होकर तमाषबीन बन जाता है।
आजादी के बाद से अब तक कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं जिसे सौ में से इक्यावन प्रतिषत वोट मिलें हों
।  तीस से चालीस प्रतिषत वोट लेकर ही राजकाज चलता रहा है। हमारी चुनाव प्रणाली ही ऐसी है कि दो चार प्रतिषत वोटों के इधर उधर हो जाने से ही सीटों में दोगुना या तीन गुना अंतर हो जाता है ।
बिहार चुनाव ने दिखा दिया है कि देष का बहुमत न  मध्यमार्गी कांग्रेस के पक्ष में है और न ही उग्र हिन्दुवाद की पोशक भाजपा के पक्ष में है । महागठबंधन होते ही सत्ताधारी पार्टी  चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा उनकी सिटटी पिटटी गुम होने लगती है। इसलिये फूट डालो राज करो की नीति आज भी हर सत्ता धारी पार्टी करती आ रही है।
फूट डालने के लिए सांप्रदायिकता और जातिवाद का भरपूर सहारा लिया जाजा उनकी मजबूरी बन जाता है तो आम जनता के लिए गले का फंदा। इस माहौल को बनाए रखने के लिए चुनाव को इतना मंहगा बना दिया जाता है ताकि बिना पैसे वाले तो चुनाव में खडा हो नहीं सकता।
देष को सांप्रदायिक व जातिवाद के जहर से  बचाने तथा सहिश्णु माहौल बनाने के लिए  चुनाव सुधार ही एकमात्र रास्ता है बाकी चुनाव सुधार हो या न हो  लेकिन एक काम जरूर हो जाए पचास फीसदी से कम वोट पाने वाले को भले ह ीवह सीटों के हिसाब से बहुमत हासिल कर ले सत्ता की बागडोर न सौंपी जाए । चाहे दोबार चुनाव क्यों न कराने पडे । मेरा मानना है पचास प्रतिषत मत प्राप्त करने की  मजबूरी के चलते सांप्रदाायिक व जातिवादी ताकतों की सांस फूलने लगेगी ।

                                 भारत भूशण

रविवार, 8 नवंबर 2015

नारियल का पेड़ है मोदी

बिहार चुनाव में भाजपा की शर्मनाक हार के वैसे तो दसियों ठोस कारण है लेकिन एक ठोस कारण यह भी है कि  मोदी के भाषण प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुकूल नहीं थे इनका स्तर  नगर पालिका चुनाव से भी नीचे के स्तर का था देश अपने प्रधानमंत्री से इतनी गिरावट बरदाश्त नहीं कर सकता भारतीय संस्क्रति कहती है कि फलदार वृक्ष को हर हाल में झुकना ही चाहिए अगर वो ऐसा नहीं कर सकता तो वो फलदार वृक्ष हो ही नहीं सकता ये देश महँगी दाल खा सकता है महंगे प्याज खा सकता है रोजगार के अभाव में बेगार कर सकता है  राम की मर्यादा .महाभारत युद्ध के नियम और चाणक्य की न्यायकारी नीतियों, कबीर, बुल्लेशाह, गुरु नानक,भगवान् महावीर,हजरत निजामुदीन जैसे सूफी संतो  वाली भारतीय संस्क्रति की बनावटी और मिलावटी  व्याख्या करने असहमति की  सोशल मीडिया पर माँ बहन करने टीवी चैनलों पर जरुरत से ज्यादा वाक्पटुता करने   वालो  को बिहार ने आइना दिखाते हुए  पुरे देश को बता दिया है कि हमारे प्रधानमंत्री नारियल का पेड़ है
         बड़ा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर,पंछी  को छाया नहीं फल लागे अति दूर
                                 भारत भूषण 

शनिवार, 7 नवंबर 2015

बिहारी दिल

कल जैसे ही इ वी ऍम से जनादेश बाहर आयेगा वो बिहार का दिल बन कर भारत के शरीर में परवेश कर जायेगा और भारत की राजनीति में नए खून का संचार करेगा इस खून से या तो भारत का शरीर कन्याकुमारी से कश्मीर तक हष्टपुष्ट होगा या पीलियाग्रस्त हो जायेगा ८ नवम्बर याद रहेगा

                                 भारत भूषण