रविवार, 22 नवंबर 2015

बहुमत माने सौ में इक्‍यावन

बहुमत माने ए सौ में इक्यावन
बहुमत माने, सौ में इक्यावन
देष में आज असहिश्णुता, सांप्रदाायिकता व जातिवाद का जो माहैल चल रहा है उसके कुछ हद तक हमारी चुनाव प्रणाली भी जिम्मेदार है । वही किसी भी  पार्टी को तीस पैतीस प्रतिषत मत लेकर सत्ता के षीर्श पर बैठा देती है। जबकि षेश साठ से पैसठ प्रतिषत बहुमत एक साइड होकर तमाषबीन बन जाता है।
आजादी के बाद से अब तक कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं जिसे सौ में से इक्यावन प्रतिषत वोट मिलें हों
।  तीस से चालीस प्रतिषत वोट लेकर ही राजकाज चलता रहा है। हमारी चुनाव प्रणाली ही ऐसी है कि दो चार प्रतिषत वोटों के इधर उधर हो जाने से ही सीटों में दोगुना या तीन गुना अंतर हो जाता है ।
बिहार चुनाव ने दिखा दिया है कि देष का बहुमत न  मध्यमार्गी कांग्रेस के पक्ष में है और न ही उग्र हिन्दुवाद की पोशक भाजपा के पक्ष में है । महागठबंधन होते ही सत्ताधारी पार्टी  चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा उनकी सिटटी पिटटी गुम होने लगती है। इसलिये फूट डालो राज करो की नीति आज भी हर सत्ता धारी पार्टी करती आ रही है।
फूट डालने के लिए सांप्रदायिकता और जातिवाद का भरपूर सहारा लिया जाजा उनकी मजबूरी बन जाता है तो आम जनता के लिए गले का फंदा। इस माहौल को बनाए रखने के लिए चुनाव को इतना मंहगा बना दिया जाता है ताकि बिना पैसे वाले तो चुनाव में खडा हो नहीं सकता।
देष को सांप्रदायिक व जातिवाद के जहर से  बचाने तथा सहिश्णु माहौल बनाने के लिए  चुनाव सुधार ही एकमात्र रास्ता है बाकी चुनाव सुधार हो या न हो  लेकिन एक काम जरूर हो जाए पचास फीसदी से कम वोट पाने वाले को भले ह ीवह सीटों के हिसाब से बहुमत हासिल कर ले सत्ता की बागडोर न सौंपी जाए । चाहे दोबार चुनाव क्यों न कराने पडे । मेरा मानना है पचास प्रतिषत मत प्राप्त करने की  मजबूरी के चलते सांप्रदाायिक व जातिवादी ताकतों की सांस फूलने लगेगी ।

                                 भारत भूशण

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