रविवार, 22 नवंबर 2015

दसमुहां रावण


दसमुहां  आर एस एस
आर एस एस को रावण की तरह दषाषन  यूं ह ी नहीं कहा जाता इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं  जो इस बात की चुगली करते है कि आर एस एस के वाकये ही दस मूंह है लेकिन ये  दस मूंह एक साथ नही ं बोलते बल्कि एक बार व एक समय में एक ही बोलता है। बाकी नो चुप रहते हैेै।
एक मूंह से कही गई बात समाज या कानून को हजम हो गई तो बाकी के नो मूंह उसका समर्थन करने लगते हैं। यदि उल्टी पड जाए तो बाकी के नो मूंह उसे  दुर्भाग्यपूर्ण कहकर टालने व अपने दसवें मूंह को बचाने की षर्मनाक कोषिष करते है। आर एस एस  अपने आप को कटटर राश्टृभक्त साबित करने के लिए अपने कार्यक्रमों में षहीदे आजम भगतसिंह की फोटो अवष्य लगाता है लेकिन उनके विचारों से उसे कोई मतलब नहीं है। न ह ीवह  अपने कार्यकर्ताओं से इस बात की अपील करता  िक वे भगत सिंह के विचारों पर अमल करें। भगतसिंह के बाकी विचारों की तो बात ही छोडिये उनकी इस छोटी सी बात पर भी अमल करने पर जोर नहीं दिया जाता कि समाज के संचालकों की कथनी और करनी में बाल भर भी अंतर नहीं होना चाहिए। जबकि यह विचार खाली भगतसिंह का नहीं बल्कि सनातन है। भगतसिंह ने असेम्बली में बम फेंकने के बाद बहादुरी के साथ अदालत में भी कहा था कि ह।ं हमने ही बहरे अंग्रेजों को सुनाने लिए विस्फोट किया है।
 हिन्द ुमहासभा ने जिस हौंसले और उत्साह के साथ गोडसे का बलिदान दिवस मनाया है वह काबिले गौर है। महासभा के इस कृत्य की कांग्रेस तथा वामपंथी दलों के साथ साथ सभी राजनीतिक पाट्रियों  ने निंदा करते हुए कानूनी  कारवाई की मांग भी की है। आर एस एस ने भी महात्मा गांधी के इस हत्यारे को महिमा मंडित किये जाने की आलोचना तो की है लेकिन हिन्द ुमहासभा पर कारवाई की मांग नहीं की है।
यही एक कारण है जो षक जाहिर करता है कि आर एस एस भी दाएं बाएं से चाहता है गोडसे को महिमामंडित  किया जाता रहे और उसकी तोहमत आर एस एस पर भी न लगे ।खुद गोडसे ने जब गांधी को मारा था तो आर एस एस ने उसे अपना कार्यकर्ता ही मानने से इंकार कर  दिया था।
 इससे पहले दादरी की घटना हो या भाजपा के कुछ नेताओं के जहरबुझे बयान हों दुर्भाग्यपूर्ण कह कर टाल दिया जाता है। यहां पर निंदा या आलोचना नहीं की जाती बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण षब्द का इस्तेमाल बडी चालाकी के साथ किया जाता है  ताकि जनभावना या कानून का तथाकथित सम्मान भी बना रहे और आर एस एस की विचारधारा के अनुकूल माहौल का निर्माण भी अनवरत चलता रहे। इससे पहले बाबरी  मस्जिद के गिराए जाने की घटना के समय भी उसे गिराने का श्रेय जनसभाओं में तो बडी बहादुरी के स ाथ लिया जाता रहा है लेकिन अदालत में ये बहादुर आज तक मानने को तैयार नहीं कि  बाबरी मस्जिद हमने ही गिराई थी। इन तथाकथित हिन्दु क्रांतिकारियों  से इतनी तो उम्मीद की ही जाती है कि वे अदालत में बहादुरी के साथ कहते कि  हां जनाब बाबरी मस्जिद हमने ही गिराई। बाबरी षब्द कहने से अगर दम घुट रहा था तो कम से कम अदालत में यही कह दें कि मी लोर्ड ढांचा हमने ही गिराया है। कलबुर्गी, व कामरेड पनसारे आादि के हत्यारे क्या भगतसिंह की तरह हिम्मत के साथ कह सकते है। कि इनकी हत्या हमने ही की है या उनकी सनातन संस्था कुछ बोल सकती है । आर एस एस सांप्रदाायिक माहौल को कभी मंद नहीं पडने दे सकती भले उसे सौ मूंह और लगाने पडें।
आर एस एस इस देष पर इतनी मेहरबानी कर दे कि वो अपने कार्यक्रमों से भगतसिंह की तस्वीर हटा ले या फिर भगतसिंह की तरह बहादुरी से सच को जनता व अदालतों में कहना सीख ले । याद हिन्दुस्तान पर वही राज करेगा जिस नेता और उसकी पार्टी में कथनी करनी का अंतर नहीं होगा। वरना जनता  प्रयोग करती रहे

                                 भारत भूशण

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