शनिवार, 17 दिसंबर 2016

उदाहरणों का प्रयोग

बचपन में बच्चों को प्रेरित करने के लिए कक्षा में शिक्षक अक्सर एक कहानी का उदाहरण देते थे कि ‘एक लड़के से उसके पिता ने जब परीक्षा का परिणाम जानने का प्रयास किया तो वह अपने वर्ग के कई छात्रों का नाम लेकर कहने लगा कि ये सभी फेल हो गए हैं। पिता ने पूछा कि तुम अपना परिणाम बताओ… मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं। इस पर बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा कि जब ये सभी फेल हो गए तो मैं कैसे पास हो सकता हूं।’ बचपन की यह कहानी भले ही गुदगुदाने वाली थी और शिक्षक भी हंसी-हंसी में कुछ प्रेरणा जागृत करने का प्रयास करते रहे हों, लेकिन इसके संदर्भ गहरे हैं। इस तरह के उदाहरण हमें अक्सर सुनने को मिलते हैं। कई जगह हम भी कोई उदाहरण देकर लोगों को अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं। धीरे-धीरे यह लोगों का औजार बनता जाता है।
उदाहरणों का प्रयोग औजार के रूप में होने लगे तो यह घातक और अनुचित है। बैंकों में लगे कतारों को लेकर राजनीतिक और गैर-राजनीतिक लोगों द्वारा दिए गए उदहारण को ही लीजिए। कोई सैनिकों की मुश्किलों का उदाहरण देकर बैंकों के आगे की भीड़ को सब्र का पाठ पढ़ा रहे हैं, तो कोई आजादी की लड़ाई में शहीद हुए लोगों से तुलना कर उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि कष्टों और संघर्षों से ही आजादी नसीब होती है। राजनीति के कई धुरंधर कोई न कोई उदाहरण का प्रयोग कर अपना हित साधते नजर आ रहे हैं। पांच सौ और हजार रुपए को बंद किए जाने पर कई नेताओं का उलटा-सीधा बयान असंवेदनशील और गंभीर हैं। सेना का पूरा जीवन संघर्ष का होता है। बेशक उनके संघर्षों से प्रेरणा लेनी चाहिए। लेकिन एक दूसरा पहलू भी है कि सेना का जीवट और संघर्ष ही उन्हें असैनिक नागरिकों से अलग करता है। उन्हें संघर्षों का और मुश्किल हालात से जूझने के लिए कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं, ताकि उनका मनोबल कम न हो, वे हमेशा उर्जावान रहे।
लेकिन हमारे समाज की आम हकीकत क्या है? एक साधारण नागरिक को सड़क पर सही तरीके से चलने तक के लिए प्रेरित नहीं किया जाता है, तो वे विषम परिस्थितियों में संयम कहां से बरतेंगे! अपने देश में कई ऐसे उदाहरण हैं कि केवल संयम खोने से कई हादसे हुए हैं और हजारों लोगों की मौत हुई है। इन उदाहरणों और तुलना करने वाले लोगों का ध्यान इस प्रश्न पर भी जाना चाहिए कि कष्ट और संघर्ष हमेशा आम लोगों के हिस्से ही क्यों आते हैं! महंगाई से लेकर प्राकृतिक आपदा की मार झेलें आम लोग, सीमा पर शहीद हों उसी साधारण लोगों की संतानें! सवाल है कि नेता और बड़े अफसर, बड़े व्यवसायी संघर्षों में क्यों नहीं होते या दिखते? आज जब पूरा देश कतारों में खड़े होकर अपने द्वारा जमा पैसे निकालने के लिए तकलीफें सह रहा है तो इन नेताओं के बेसुरे बोल इन्हें आहत करने पर तुले हुए हैं। हथियार रूपी उदाहरण आम इंसानों का सीना ही छलनी करते हैं।
उदाहरण हमारी संवेदनाओं को कुरेदते हैं। जो जख्म हमारे सत्ता में बैठे लोग हमें देते हैं, सत्ता के करीबी लोग कोई उदाहरण गढ़ लेते हैं और हमारी जख्मों पर एक लेप चढ़ा देते हैं। यह लेप दर्द तो जरूर कम करता है, लेकिन घाव भरता नहीं। वह अंदर ही अंदर गहरा होता जाता है। जब तर्क कमजोर पड़ने लगते हैं तो लोग उदाहरणों का प्रयोग करते हैं। इन दिनों राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में तर्क से ज्यादा कुतर्क से अपनी बात मनवाने का प्रचलन बढ़ गया है। मनगढ़ंत उदाहरण और झूठे तर्कों के सहारे सही को गलत और गलत को सही करने का खेल चल पड़ा है। इस खेल में आम लोगों से लेकर नेता अफसर और व्यवसायी सभी एकरूपता से लगे हुए हैं।
कई बार उदाहरणों का प्रयोग तथ्यों को छिपाने के लिए भी किया जाता है। संसाधन की अनुपलब्धता या हमारी कमजोर तैयारी को छिपाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कर आम लोगों के दिमाग पर एक परदा डाल दिया जाता है। एक सभ्य और संवेदनशील मुल्क में ऐसे उदाहरणों और तुलना की राजनीति से हम आम भावना से खेल रहे हैं। भारत की सभ्यता रही है दूसरों की तकलीफों को उसे बिना आभास हुए दूर करने की। लेकिन इन नेताओं और किसी खास नेता के महिमामंडन में लगे लोगों द्वारा की गई टिप्पणी से न केवल पीड़ित व्यक्ति के जख्म हरे हुए हैं, बल्कि उनके भीतर नफरत को भी हवा मिल रही है। पीड़ा में जब कोई हो तो उसे सहायता की जरूरत होती है, न कि उपदेश के। इस तथ्य को समझने की जरूरत है।

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