शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

वर्चस्व का मानस

वर्चस्व का मानस
प्रभुत्व की मानसिकता इंसान को किस कदर संवेदनहीन और आपराधिक बना डालती है उसके उदाहरण हमें अक्सर मिलते रहते हैं। लेकिन पिछले दिनों महिलाओं के खिलाफ हुई कुछ घटनाओं ने मुझे भीतर से झकझोर दिया। ये घटनाएं अपनी पूरी तीव्रता के साथ टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियां भी बनीं लेकिन उसमें अपनी.अपनी जिम्मेदारी की तलाश नहीं गई। पहली घटना में राजधानी दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक इक्कीस साल के लड़के ने बेरहमी से कैंची के लगातार वार से लड़की की हत्या कर दी। इसी तरह गुड़गांव के एक मेट्रो स्टेशन पर एकतरफा प्यार में पागल एक युवक ने महिला के इनकार करने पर सरेआम चाकू से वार कर उसकी हत्या कर दी। एक अन्य घटना में राजस्थान के अलवर जिले में बेहद क्रूर तरीके से एक महिला की हत्या का मामला सामने आया। युवक ने अपनी पत्नी के चरित्र पर शक के कारण मिट्टी का तेल डाल कर जिंदा जला दिया और फिर चाकू से उसके अंगों के टुकड़े कर शहर के विभिन्न हिस्सों में फेंक दिए।
महिलाओं पर हमले की खबरें आए दिन सुर्खियां बनती रहती हैं। हर रोज महिलाओं को छेड़छाड़ पिटाई अपमान यौन शोषण जैसी हिंसात्मक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कई बार उनके जीवन साथी या परिवार के सदस्य भी उनकी हत्या कर देते हैं। ज्यादातर घटनाओं के बारे में तो पता ही नहीं चलता है क्योंकि कमजोर पृष्ठभूमि की शोषित और प्रताड़ित महिलाएं किसी को इसके बारे में बताने से घबराती हैं। उन्हें डर लगता है कि कहीं ये पितृसत्तात्मक और सामंती मानस वाला समाज उन्हें ही दोषी ठहरा कर और ज्यादा नुकसान न पहुंचाए। मेरे संपर्क की एक महिला ने अपना दुख इन शब्दों में जाहिर किया. आज हालात ये हैं कि घरए समाज में महिलाओं के लिए डर ही उनकी एक ऐसी सखी है जो हर पल उनके साथ रहती है और हिंसा एक ऐसा खतरनाक अजनबी है जो किसी भी वक्तए किसी भी मोड़ सड़क या आम जगह पर उन्हें धर.दबोच सकता है।
सवाल है कि आखिर कोई पुरुष महिला के प्रति इतना हिंसक क्यों हो जाता है। खासतौर पर महिला के महज इनकार करने भर से पुरुष हमलावर क्यों हो जाता है! कोई भी पुरुष महिला को चोट पहुंचाने के लिए अनेक बहाने बना सकता है। मसलनए वह शराब के नशे में था वह अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है आदि। लेकिन सच यह है कि पुरुष हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इस माध्यम से वह सब प्राप्त कर सकता है जिन्हें वह एक पुरुष होने के कारण अपना हक समझता है। इस घातक मानसिकता का ही परिणाम है कि महिलाओं के खिलाफ छेड़छाड़ बलात्कार दहेज हत्या और यौन हिंसा जैसे अपराधों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह स्थिति तब है जब देश में महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध कानूनी संरक्षण हासिल है।
विडंबना यह है कि समाज में स्वतंत्रता और आधुनिकता के विस्तार के साथ.साथ महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव भी बढ़ा है। प्राचीन सामाज में ही नहीं बल्कि आधुनिक समाज की दृष्टि में भी महिलाएं केवल वस्तु हैं जिसको थोपी और गढ़ी.बुनी गई तथाकथित नैतिकता की परिधि से बाहर नहीं आना चाहिए। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के मुताबिकए ष्महिलाओं के प्रति हिंसा पुरुषों और महिलाओं के बीच ऐतिहासिक शक्ति की असमानता का प्रकटीकरण हैष् और हिलाओं के प्रति हिंसा एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा कमतर स्थिति में धकेल दी जाती हैं।ष् संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था ष्दुनिया के कोने.कोने में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जा रही है। हर समाज और हर संस्कृति की महिलाएं इस जुल्म की शिकार हो रही हैं। वे चाहे किसी भी जातिए राष्ट्रए समाज या तबके की क्यों न हों या उनका जन्म चाहे जहां भी हुआ हो वे हिंसा से अछूती नहीं हैं।
मैंने समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए प्रयोग किए जाने वाले शब्दों पर गौर किया तो यही लगा कि पुरुष के लिए निडर मजबूत मर्द ताकतवर तगड़ा सत्ताधारी कठोर हृदय मूंछों वाला और महिलाओं के लिए कोमल बेचारी अबलाए घर बिगाड़ू कमजोर बदचलन झगड़ालू आदि शब्द प्रयोग किए जाते हैं। इनमें से कुछ शब्द तो महिला.पुरुष में प्राकृतिक अंतर के प्रतीक हैं लेकिन ज्यादातर शब्द प्राकृतिक कम सामाजिक ज्यादा हैं। यानी पितृसत्तात्मक समाज ने इन शब्दों और इसके पीछे की अवधारणा को गढ़ा है जबकि असलियत में ये शब्द केवल महिलाओं को कमजोर दिखाने के लिए ही प्रयोग किए जाते हैं। मैं अपने आसपास के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि केवल पुरुष ही नहीं बल्कि एक महिला भी बराबर के स्तर पर बुद्धिमान ताकतवर मजबूत और निडर होती है। बस दिक्कत यह है कि अब तक उससे परोक्ष या प्रत्यक्ष तरीके से उसकी ताकत छीनी गई है।

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