शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

सीखने की कला

सीखने की कला
कहा जाता है कि हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए। यानी पिछली गलतियों से सबक लेकर आगे की राह में बचा जा सकता है। महात्मा गांधी कहते हैं कि मनुष्य को गलती करने की आजादी होनी चाहिए ताकि वह नए मार्ग तलाश सके। वह पिछली गलतियों से सीखेगा तभी सफल हो पाएगा। जॉन पॉवेल तो यहां तक कहते हैं कि वास्तविक गलती वह है जिससे हम कुछ भी नहीं सीखते।
लेकिन द पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग के लेखक नॉर्मन विंसेट पील इसकी व्याख्या अलग तरीके से करते हैं। वह कहते हैं कि गलतियों से सीखने की प्रवृत्ति एक नकारात्मक धारणा है। गलतियों की बजाय सफलताओं से हमें सीखना चाहिए। जब हम गलतियों से सीखने की बात करते हैं तो हमारा मुख्य ध्येय किसी काम विशेष को न दोहराने या किसी राह विशेष पर न चलने का होता है। यह तरीका सिर्फ बचाव का विकल्प सुझाता है सफलता पाने की राह नहीं दिखाता। हमारी ऊर्जा इस बात पर खर्च हो जाती है कि कैसे गलतियों से बचा जाए इसकी बजाय हमें सफलताओं से सीखना चाहिए। यह लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। साथ ही सफल मार्गों का अनुसरण खुद ही गलतियों से बचा देता है। सकारात्मक सोच सदैव सफलता के मार्ग में हौसला बढ़ाती है। इसलिए यही सबसे अच्छा रास्ता है।
ये दोनों विचार अपने.अपने दृष्टिकोण से उचित हैं। जब हम गलतियों से सीख रहे होते हैं तब हम दरअसल सफलता के नए मार्ग ही तलाश रहे होते हैं। अमेरिकी दार्शनिक व शिक्षाविद जॉन दवे कहते हैं कि वास्तविक चिंतनशील व्यक्ति वही है जो अपनी असफलता से भी उतना ही सीखता हैए जितना सफलता से।

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