गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

सम्मान का हकदार

सम्मान का हकदार
एक समय ऐसा आया जब दुनिया को जीतने की इच्छा रखने वाला नेपोलियन हेलना द्वीप में एक जेल में पहुंचा दिया गया। वहां वह एक दिन सुबह सैर के लिए निकला। सामने पगडंडी पर एक घास काटने वाली औरत आती दिखाई दी। नेपोलियन के साथ चल रहे लोगों ने उसे रास्ता छोड़ देने के लिए कहा लेकिन उसने अनसुना कर दिया। अंतत नेपोलियन को ही पगडंडी से उतरना पड़ा। उसके कुछ साल पहले तक क्या कोई इसकी कल्पना भी कर सकता था ऐसी ही स्थिति हिटलर औरंगजेब जैसे तानाशाहों की भी रही है। वहीं दूसरी तरफ भगवान महावीर महात्मा बुद्ध गांधी मार्टिन लूथर किंग हैं जिनकी तस्वीर को देखकर ही लोग श्रद्धा से सिर झुका लेते हैं।
फर्क यह है कि एक ने इतिहास को रक्त.रंजित कर धरती पर साम्राज्य कायम करने की कोशिश की और दूसरे ने अहिंसा से हर किसी के मन पर अपनी जगह बनाने की कोशिश की। एक ने भय को अपना हथियार बनायाए जबकि दूसरे ने अभय का संदेश दिया। बुद्ध हो या गांधी इन सबने पहले खुद को अपना मित्र बनाया। खुद को जीता। तीर्थंकर महावीर कहते हैं कि जो अपना मित्र बन जाता है उसका कोई शत्रु होता ही नहीं। इसमें स्वयं को जीतने का संघर्ष है। लेकिन हमारे जीवन का सबसे बड़ा रोड़ा है अति महात्वाकांक्षी होना। उस अति महात्वाकांक्षी के पास अगर ज्ञान का अभाव होए तो वह गलत रास्ता चुनने में परहेज नहीं करता है। नेपोलियन और हिटलर के पास शक्ति थी मगर ज्ञान और धैर्य का अभाव था। जबकि गांधी लूथर आदि के पास ज्ञानए धैर्य साहस सब कुछ था। सम्मान के हकदार वही हुए हैं जिनके जीवन पर अच्छे विचारों की छाया रही है।

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