परंपराओं की जकड़
विंस्टन चर्चिल ने एक बार एक सभा में कहा था कि अगर हर व्यक्ति अपने उद्देश्य के अनुसार अपना मार्ग चुन लेए लेकिन औरों को भी उसी मार्ग पर चलने के लिए बाध्य न करे तो तकरार कम होगी और आत्मावलोकन का भी अवसर मिलेगा। यह उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो बने बनाए ढर्रे और नियमों पर चलने के लिए अपने बच्चों को बाध्य करते हैं। नियम इसलिए होते हैं कि अनुशासन के साथ हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। मगर जब नियमों का अनुसरण करना ही लक्ष्य बन जाएए तो किसी दूसरे लक्ष्य तक पहुंचना कठिन हो जाता है। हरेक समाज में कुछ ऐसे नियम होते हैंए जिनका पालन एक सुगठित समाज के लिए आवश्यक है।
नियम जब रूढ़ि में बदल जाए तब उसे मिटा देना ही श्रेयस्कर है। शादी.विवाह के दौरान अक्सर ऐसे पारंपरिक अनुष्ठान किए जाते हैंए जिनमें समय की बर्बादी के साथ फिजूलखर्ची भी होती है। इन्हें किसने बनायाघ् कब बनायाघ् क्यों बनायाघ् यह हम नहीं जानतेए पर पीढ़ी दर पीढ़ी उनका निर्वहन करते आ रहे हैं। पिछले दिनों एक विवाह समारोह में जाना हुआ। बारात पहुंचने का तयशुदा समय निकला जा रहा था। मेहमान ऊबकर वापस लौट गए। देरी की वजह थी कि दूल्हे को आम के पेड़ के नीचे कुछ रस्में निभानी थीं और उस पूरे इलाके में कहीं आम का पेड़ नहीं था। चर्चित दार्शनिक कंफ्यूशियस ने जीवन को लचीला बनाने वाले तत्वों पर बल देते हुए कहा है कि जो लोग समय और परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालते हैंए वे सबसे सुखी लोग हैं। क्या आप आम का पेड़ ढूंढ़ने वाले असंतुष्ट बनना चाहते हैं या इसके आगे बढ़कर सुख हासिल करना चाहते हैं।
विंस्टन चर्चिल ने एक बार एक सभा में कहा था कि अगर हर व्यक्ति अपने उद्देश्य के अनुसार अपना मार्ग चुन लेए लेकिन औरों को भी उसी मार्ग पर चलने के लिए बाध्य न करे तो तकरार कम होगी और आत्मावलोकन का भी अवसर मिलेगा। यह उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो बने बनाए ढर्रे और नियमों पर चलने के लिए अपने बच्चों को बाध्य करते हैं। नियम इसलिए होते हैं कि अनुशासन के साथ हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। मगर जब नियमों का अनुसरण करना ही लक्ष्य बन जाएए तो किसी दूसरे लक्ष्य तक पहुंचना कठिन हो जाता है। हरेक समाज में कुछ ऐसे नियम होते हैंए जिनका पालन एक सुगठित समाज के लिए आवश्यक है।
नियम जब रूढ़ि में बदल जाए तब उसे मिटा देना ही श्रेयस्कर है। शादी.विवाह के दौरान अक्सर ऐसे पारंपरिक अनुष्ठान किए जाते हैंए जिनमें समय की बर्बादी के साथ फिजूलखर्ची भी होती है। इन्हें किसने बनायाघ् कब बनायाघ् क्यों बनायाघ् यह हम नहीं जानतेए पर पीढ़ी दर पीढ़ी उनका निर्वहन करते आ रहे हैं। पिछले दिनों एक विवाह समारोह में जाना हुआ। बारात पहुंचने का तयशुदा समय निकला जा रहा था। मेहमान ऊबकर वापस लौट गए। देरी की वजह थी कि दूल्हे को आम के पेड़ के नीचे कुछ रस्में निभानी थीं और उस पूरे इलाके में कहीं आम का पेड़ नहीं था। चर्चित दार्शनिक कंफ्यूशियस ने जीवन को लचीला बनाने वाले तत्वों पर बल देते हुए कहा है कि जो लोग समय और परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालते हैंए वे सबसे सुखी लोग हैं। क्या आप आम का पेड़ ढूंढ़ने वाले असंतुष्ट बनना चाहते हैं या इसके आगे बढ़कर सुख हासिल करना चाहते हैं।
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