शनिवार, 17 दिसंबर 2016

विचारों की स्वतंत्रता

एक सभ्य समाज में विचारों की स्वतंत्रता की अहमियत कितनी है, इससे हम सब वाकिफ हैं! सभी स्त्री-पुरुष के अपने-अपने अलग विचार और मान्यताएं होती हैं। किसी के विचार किसी पर जबरन थोपे नहीं जा सकते। अगर ऐसा होता है तो यह विचार स्वातंत्र्य को छिनने या दबाने जैसा है। विचार सिर्फ मन में उभर कर रह जाते हैं और व्यक्त नहीं किए जाते तो उनका महत्त्व उसी व्यक्ति तक सीमित रह जाता है। लेकिन व्यक्त किए गए विचारों का महत्त्व यकीनन ज्यादा है, क्योंकि उनका प्रभाव उस व्यक्ति से संबंधित सभी लोगों और समाज पर भी पड़ता है। अगर कोई स्त्री या पुरुष अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करे और उसमें खुद को ढालते हुए कोई कार्य करना चाहे तो जाहिर है कि कार्य के परिणाम की जिम्मेदारी उसकी अपनी ही होती है। इसीलिए अपने विचारों पर अमल करना मजबूत इरादे वाले और धैर्यशील लोगों का ही काम है। यह जरूरी नहीं कि आपके संपर्क में आने वाले सभी लोग, आपके विचारों से सहमत हों। आपके विचार जान कर आपा खोने वाले, परिणाम से डरने वाले, जानबूझ कर आपका विरोध करने वाले और आपका मजाक उड़ाने वाले बहुत से लोग मिल जाएंगे। जब आप अपने विचारों पर अमल करने के लिए कदम बढ़ाने लगें तो आपके रास्ते में कई तरह की रुकावटें डालने वाले लोग भी आपको मिल जाएंगे। ऐसे में मन को दृढ़ बना कर आगे बढ़ना या अपने आप को रोकना आपका स्वतंत्र निर्णय है।
पिता-पुत्र के भाई-भाई के और पति-पत्नी के विचार भी कई मामलों में भिन्न हो सकते हैं। ऐसे में आपस में मनमुटाव और झगड़े भी हो सकते हैं। पिता-पुत्र या भाई-भाई के भिन्न विचारों को लेकर होने वाले झगड़े या मनमुटाव को हमारा समाज सामान्य रूप में स्वीकार कर लेता है। लेकिन पति-पत्नी के भिन्न विचारों को लेकर हुए झगड़े और मनमुटाव को समाज टेढ़ी नजर से देखता है। पत्नी के विचार पति से भिन्न होने की बात समाज बर्दाश्त नहीं कर पाता। अगर पत्नी अपने स्वतंत्र विचारों पर अमल करती है और पति उसका विरोध कर रहा है, तो पैदा होने वाली पारिवारिक समस्या के लिए जिम्मेदार पत्नी ही मानी जाती है।
आज से कुछ दशक पहले इसी कारण को लेकर विवाहित स्त्रियां अपने विचारों को व्यक्त करने से डरती थीं। वे सोचती थी कि कहीं पति ने विरोध जताया तो गृहस्थी छिन्न-भिन्न होने में देर नहीं लगेगी। यही सोच कर वह मन मार कर रह जाती थी। ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों का साथ होना तो असंभव-सा था। उसके अपने-अपने अभिभावक और माता-पिता भी उसे पति के विचारों के विरुद्ध कदम उठाने से साफ तौर पर मना कर देते थे। उसे वोट भी उसी पार्टी और उम्मीदवार को देना पड़ता था, जिसे पति पसंद करता था! अपनी सोच या अपने स्वतंत्र विचारों को वह कार्यान्वित नहीं कर सकती थी।लेकिन वक्त ने करवट बदला। पाश्चात्य संस्कृति के समाज पर कुछ बुरे प्रभाव अवश्य पड़े, लेकिन एक अच्छा प्रभाव भी पड़ा। महिलाओं ने अपने आप को कमजोर और लाचार समझना छोड़ दिया। अपने बलबूते पर काम करने के लिए मन को मजबूत बना लिया और अपने स्वतंत्र विचारों पर अमल करना भी सीख लिया। जैसे ज्योत से ज्योत जलाई जाती है, वैसे ही एक स्त्री दूसरी स्त्री की प्रेरणा बनती गई। इससे समाज में भी जागृति आ गई। शुरू-शुरू में सामाजिक स्तर पर जरूर इसका विरोध हुआ। लेकिन इस बीच एक अच्छी बात यह हुई कि कुछ पुरुषों ने अपनी पत्नी का साथ देकर एक अनुकरणीय उदाहरण समाज के सामने रखा। इसके बावजूद कि पत्नी के विचार उनके विचारों से नहीं मिलते थे।
ऐसे उदाहरणों ने यह भी साबित किया कि इससे पारिवारिक शांति में कोई खलल नहीं पड़ती। इसका ताजा उदाहरण बच्चन परिवार का है! प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन राजनीतिक रूप से अपनी पसंद और समझ से किसी खास पार्टी के पक्ष में कोई राय रखते हों, उनकी पत्नी जया बच्चन उनसे इतर राय रखती हैं। जया के अपने अलग विचार हैं। अपने लिए उन्होंने अलग कार्यक्षेत्र चुना है। हो सकता है कि अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी जया बच्चन के राजनीतिक पक्ष और विचारों के समर्थक नहीं हों, लेकिन वे उनका कभी विरोध करते नहीं दिखते, बल्कि जरूरत पड़ने पर उनकी सहायता भी करते हैं। इसका उनके निजी संबंधों और जीवन पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है।यह तो एक मशहूर हस्ती का उदाहरण है। लेकिन सामान्य लोगों के बीच भी ऐसे किस्से आम हो रहे हैं जिसमें पति या पत्नी के सोचने-समझने, विचार और काम के क्षेत्र भिन्न हैं, लेकिन उनके निजी संबंध सहज हैं। दरअसल, विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी सभी के लिए जरूरी है। समाज या राजनीति, किसी भी क्षेत्र में सत्ताधारी पक्ष की वह हर बात मान लेने की जरूरत नहीं है, जो आपको उचित नहीं लगती हो। विचारों की आजादी सबकी अपनी है

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