शनिवार, 17 दिसंबर 2016

खुद से बात

खुद से बात
यूं बॉस से मुलाकात थोड़ी ही देर के लिए होती है, लेकिन उनके भीतर बॉस से बातचीत चल रही होती है। उन्होंने महसूस किया कि वह अकेले में भी किसी न किसी से बात करते रहते हैं। बस अपने से ही बात नहीं हो पाती।
‘अपने से बात करिए न! और ऐसे बात करिए, जैसे आप अपने बेहतरीन दोस्त से करते हों।’ यह कहना है डॉ. इसाडोरा अलमान का। वह मशहूर साइकोथिरेपिस्ट हैं। मानवीय रिश्तों पर कमाल का काम किया है। उनकी चर्चित किताब है, ब्लूबड्र्स ऑफ इम्पॉसिबल पैराडाइजेज। हम सब अपने से बात करते हैं। यह अलग बात है कि हमें पता ही नहीं चलता। अनजाने में जो बात हो रही होती है, वह किसी न किसी से बात का हिस्सा होती है। हम अक्सर दूसरे से बात कर रहे होते हैं। कभी किसी से सवाल कर रहे होते हैं। कभी किसी को जवाब दे रहे होते हैं। हम बात अपने से कर रहे होते हैं, लेकिन उसमें शामिल कोई दूसरा ही होता है।

असल में, हम जब अपने से बात करें, तो कोई दूसरा उसमें नहीं होना चाहिए। हम अकेले हों, तो सिर्फ अपने से बतियाएं। अपना ही हालचाल पूछें। अपने ही दिल की सुनें। हम अक्सर दूसरों की ही सुनते रहते हैं। या सुनाते रहते हैं। हम अपने को ही नहीं सुन पाते। हम जब अपना ख्याल करते हैं, तो अपना राग-रंग भी सुनते हैं। अपनी बात कहते-सुनते हैं, तो जिंदगी बदलने लगती है। हम जब अपने से बात करते हैं, तो कुछ अपना ही दबा-छिपा बाहर आता है। अपने से बात तो कीजिए, उससे कुछ बेहतर निकल सकता है। हमारी कोई अनसुलझी गुत्थी उससे सुलझ सकती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें