शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

परिस्थिति और मनोदशा

परिस्थिति और मनोदशा
बहुत से व्यक्ति परिस्थितियों को दोषी मानते हैं। वे अपनी मनोदशा बदलने के लिए तैयार नहीं होते और अशांति व असंतोष के दावानल में जलते रहते हैं। उनके मन में सदैव दूसरों के प्रति गिला.शिकवा बना रहता है। यदि मिट्टी में घड़ा बनने की योग्यता और संभावना नहीं हो तो कुशल निर्माता भी सफल नहीं होगा। जीवन में परिस्थिति और मनरूस्थितिए दोनों का महत्व है। उत्थान.पतनए सुख.दुख तथा हर्ष.शोक में दोनों साथ.साथ चलते हैं। लेकिन आज के जनमानस पर परिस्थिति का एकांगी प्रभाव दिखता हैए यह उचित नहीं है क्योंकि परिस्थिति की अपेक्षा मनरूस्थिति का महत्व अधिक होता है। उसमें सुधार के बिना शांति और समाधान की दिशा प्राप्त नहीं हो सकती।

स्वामी विवेकानंद जंगल में एक वृक्ष की छाया में खड़े थे। अचानक वहां कुछ बंदर आ गए। स्वामीजी उन्हें देखते ही दौड़ेए तो बंदर भी पीछे दौड़े। वह घबराए नहीं अपितु साहस के साथ बंदरों के सामने खड़े हो गए। अब बंदर भी ठहर गए। उन्होंने इस प्रसंग को जीवन के साथ जोड़ते हुए लिखा.जो परिस्थिति से डरता हैए समस्याओं के बंदर उसे अधिक डराते हैं। जिसका मनोबल ऊंचा होता हैए उसके लिए समस्या स्वयं समाधान बन जाती है।ष् मानव परिस्थितियों और व्यवस्थाओं का स्वामी है। उसकी मानसिक शांति व स्वस्थता के बिना सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था का कोई भी प्रयोग सफल नहीं हो सकता। जहां भी काले धन का वर्चस्व बढ़ा हैए भौतिक सुख.साधन बढ़े हैं वहां नशीले पदार्थों का प्रसार बढ़ा हैए मनोरोग बढ़े हैंए तथा आत्महत्या के आंकड़े भी बढ़े हैं। जिसका मन शांत और प्रसन्न है उसके लिए मार्ग के कांटे भी फूल बन जाते हैं और जिसका मन अशांत हैए उसके लिए सुख भी दुख में बदल जाता है। विलियम फ्रेडरिक एच जूनियर ने कहा कि इस दुनिया में कोई भी महान व्यक्ति नहीं हैए सिर्फ महान चुनौतियां ही हैं जिनका सामान्य व्यक्ति उठकर सामना करते हैं।

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